72 आवाजों का जादूगर विवेक आज भी पहचान को तरस रहा है

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रिपोर्टर – माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली 

रायबरेली। शहर के पुलिस लाइन क्षेत्र निवासी दिनेश कुमार का 21 वर्षीय पुत्र विवेक कुमार बचपन से ही एक खास प्रतिभा का धनी है। विवेक लगभग 72 प्रकार की अलग-अलग आवाजें हूबहू निकालने की कला रखता है, जिसमें जानवरों से लेकर मशीनों तक की ध्वनियां शामिल हैं। वह शेर, कुत्ता, बिल्ली, बंदर, गाय, भैंस सहित 75 से अधिक पशु-पक्षियों की आवाजों के साथ-साथ एम्बुलेंस, मोबाइल वाइब्रेशन, ट्रेन, कार, बस जैसी मशीनों की आवाजें भी इतनी सटीकता से निकालता है कि सुनने वाले चौंक जाते हैं।

इस अनोखी प्रतिभा को लेकर विवेक अब तक उत्तर प्रदेश के 35 से अधिक जिलों में स्टेज परफॉर्मेंस दे चुका है। लखनऊ, कानपुर, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, फतेहपुर, प्रयागराज सहित कई जिलों में उसने अपने हुनर का प्रदर्शन किया है। हर जगह दर्शकों ने उसे सराहा और तारीफ की, लेकिन पहचान और मंच की कमी आज भी उसकी राह में रोड़ा बनी हुई है। विवेक बताता है कि उसे विदेशों से भी शो में भाग लेने के लिए कई बार प्रस्ताव मिले, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वह आज तक विदेश नहीं जा सका।

विवेक कहता है कि उसे अपनी कला पर पूरा विश्वास है और वह चाहता है कि एक दिन इसी कला के दम पर अपने माता-पिता और देश का नाम रोशन करे। उसका सपना है कि वह मिमिक्री की दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम बने, लेकिन आर्थिक बाधाएं उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। कई बार प्राइवेट इवेंट्स और स्कूलों के कार्यक्रमों में उसे बुलाया गया, लेकिन इनमें न के बराबर पारिश्रमिक मिलता है और न ही कोई पहचान।

उसके अनुसार, यदि सरकार या कोई सामाजिक संस्था उसे सहयोग दे, तो वह न केवल देश बल्कि विदेशों में भी अपने टैलेंट का प्रदर्शन कर सकता है। विवेक की प्रतिभा को देखकर यह साफ है कि यदि उसे सही मार्गदर्शन और आर्थिक सहायता मिल जाए तो वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

विवेक रोजाना अभ्यास करता है और नई आवाजें सीखने की कोशिश करता है। उसका मानना है कि भारत में बहुत से ऐसे युवा हैं जिनमें अनोखी प्रतिभाएं छिपी हैं, लेकिन मंच और संसाधनों की कमी उन्हें आगे बढ़ने से रोक देती है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्किल इंडिया, युवा प्रतिभा प्रोत्साहन जैसे अभियानों में ऐसे हुनरमंद युवाओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

समाजसेवियों, प्रशासन और संस्कृति विभाग से वह अपील करता है कि उसकी प्रतिभा को पहचान मिले और उसे एक ऐसा मंच उपलब्ध कराया जाए जहां वह अपनी कला का पूरा प्रदर्शन कर सके। विवेक को इस बात का भी मलाल है कि अब तक किसी सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने उसकी कला को प्रोत्साहित नहीं किया, जबकि वह कई वर्षों से लगातार मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा है।

रायबरेली जैसे छोटे शहर से निकलकर इस स्तर की प्रतिभा का सामने आना यह दिखाता है कि भारत के गांव और कस्बों में आज भी अद्भुत कला और टैलेंट छिपा हुआ है, जिसे अगर सही समय पर पहचाना जाए और सहयोग दिया जाए तो वह देश का गौरव बन सकता है। विवेक जैसे युवाओं को मंच देकर न केवल एक कलाकार को अवसर दिया जा सकता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी समृद्ध किया जा सकता है।


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