
वट सावित्री व्रत 2025: लखनऊ की महिलाओं ने पति की दीर्घायु के लिए किया व्रत और पूजा
रिपोर्ट : संदीप मिश्रा ‘रायबरेली‘
लखनऊ, 26 मई 2025: आज वट सावित्री व्रत के पावन अवसर पर लखनऊ की विवाहित महिलाओं ने अपने पतियों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए व्रत रखा और वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा की। यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है और विशेष रूप से उत्तर भारत में इसकी विशेष मान्यता है।
व्रत का महत्व और पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत का संबंध महाभारत काल की एक प्रेरणादायक कथा से है, जिसमें देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस प्राप्त किया था। इस व्रत में महिलाएं निर्जल उपवास रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जो त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और शिव—का प्रतीक माना जाता है।
लखनऊ में व्रत की धूम
लखनऊ के विभिन्न क्षेत्रों जैसे टकरोही मार्केट, गल्ला मंडी, इंदिरा नगर, अलीगंज, राजाजीपुरम और गोमती नगर में सुबह से ही महिलाओं की भीड़ वट वृक्षों के पास देखी गई। महिलाएं पारंपरिक परिधान—लाल और पीले रंग की साड़ियाँ, चूड़ियाँ, बिंदी और सिंदूर—धारण कर पूजा स्थल पर पहुँचीं। उन्होंने वट वृक्ष के चारों ओर 12 बार परिक्रमा की, धागा लपेटा और फल, मिठाई, फूल आदि अर्पित किए।
पूजा विधि और कथा वाचन
पूजा के बाद महिलाओं ने सावित्री और सत्यवान की कथा का सामूहिक वाचन किया। इस कथा में सावित्री की दृढ़ निष्ठा और समर्पण का वर्णन है, जिसने अपने पति को मृत्यु के देवता यमराज से वापस प्राप्त किया। महिलाओं ने यह व्रत अपने पतियों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए रखा।
आधुनिकता और परंपरा का संगम
इस वर्ष विशेष बात यह रही कि कई व्यवसायिक महिलाओं ने भी इस व्रत में भाग लिया। ऑनलाइन व्यापार, स्टॉक ट्रेडिंग और अन्य व्यवसायों में सक्रिय महिलाओं ने पूजा के बाद अपने कार्यों को संभाला। उन्होंने यह संदेश दिया कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकती हैं।
सोशल मीडिया पर उत्सव की झलक
वट सावित्री व्रत की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी खूब साझा किए गए। #VatSavitriVrat, #SavitriSatyavan, #TradingWomen जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे, जिसमें महिलाओं ने अपने व्रत और पूजा की झलकियाँ साझा कीं।
निष्कर्ष
वट सावित्री व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह महिलाओं की निष्ठा, समर्पण और शक्ति का प्रतीक भी है। लखनऊ की महिलाओं ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि परंपरा और आधुनिकता का संगम संभव है।