
रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली | कड़क टाइम्स
स्थान: गोसाईगंज, अयोध्या | दिनांक: 19 जुलाई 2025
गोसाईगंज नगर के उत्तरी छोर पर रेलवे लाइन के किनारे बसा शहीदवारी मोहल्ला, शुक्रवार को एक रूहानी माहौल का गवाह बना। यहां स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हज़रत मोहम्मद इलाही शहीद बाबा रहमतुल्लाह अलैह के आस्ताने पर उनका 101वां सालाना उर्स अकीदत और श्रद्धा के साथ मनाया गया।
इस ऐतिहासिक अवसर पर दूर-दराज़ से आए हजारों ज़ायरीन ने शामिल होकर मुल्क की सलामती, भाईचारे और अमन-चैन के लिए दुआ की।
सुबह से शुरू हुआ रूहानी सिलसिला
सुबह सबसे पहले कुरानख्वानी की गई, जिसके बाद पारंपरिक तरीकों से आस्ताने की गुस्ल, संदल, चादरपोशी और गागर शरीफ की रस्में अदा की गईं। आस्ताने के चारों ओर गुलाबजल और इत्र की महक फैली रही, जिससे माहौल खुशबू और पाकीज़गी से भर गया।
दिन भर लोग अपनी-अपनी मन्नतें लेकर दरगाह पर आते रहे और नज़रों-नियाज़ पेश करते रहे। वहीं, लंगर-ए-आम में हज़ारों श्रद्धालुओं ने मिल-बैठकर खाना खाया, जो आपसी भाईचारे की मिसाल बना।
कव्वाली की महफिल ने बांधा समां
शाम ढलते ही कार्यक्रम का सबसे चर्चित हिस्सा शुरू हुआ – जवाबी कव्वाली का मुकाबला, जिसमें देश के दो प्रसिद्ध नाम शामिल रहे:
- रिज़वान चिश्ती (अयोध्या)
- शीबा परवीन (कानपुर)
दोनों कलाकारों ने एक से बढ़कर एक सूफियाना कलाम पेश किए। “दमादम मस्त कलंदर”, “तेरे इश्क़ में जो भी डूब गया”, “भर दे झोली” जैसे कलामों पर श्रोताओं ने तालियों से समां बांध दिया। ये कव्वाली मुकाबला पूरी रात चला और श्रद्धालु आखिरी तक जमे रहे।
सुबह 4:13 पर हुआ कुल शरीफ
रातभर चली कव्वाली महफिल के बाद सुबह 4 बजकर 13 मिनट पर कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। इस मौके पर दरगाह परिसर में मौजूद अकीदतमंदों ने देश में अमन, शांति और तरक्की की दुआ मांगी।
आयोजन की अगुवाई करने वाले चेहरे
इस सालाना आयोजन को सफल बनाने में कई स्थानीय खादिमों और सेवकों की विशेष भूमिका रही। प्रमुख नामों में शामिल हैं:
- मास्टर मुबारक अली इदरीशी (खादिम-ए-आस्ताना)
- मोहम्मद कैफ इदरीशी (खास खादिम)
- अय्यूब वारसी, बाबा लाल मोहम्मद वारसी, इश्तियाक अंसारी,
- वैश अंसारी, मकसूद आलम अंसारी, अकबाल हुसैन,
- हाफ़िज़ नियाज़ अहमद, हाफ़िज़ वासिद अली,
- जुम्मन अली, इरफान अली, मोहम्मद अरमान,
- हाजी लाल मोहम्मद (फल व्यवसायी)
इन सभी ने अपनी सेवाएं तन-मन-धन से दीं, जिससे पूरा कार्यक्रम अनुशासन और व्यवस्था के साथ सम्पन्न हुआ।
अमन और एकता का संदेश
इस उर्स की सबसे बड़ी खासियत यही रही कि इसमें सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग शामिल हुए। किसी ने सिर झुकाकर मन्नत मांगी, तो किसी ने हाथ उठाकर मुल्क की सलामती की दुआ की।
यह आयोजन केवल धार्मिक रस्म अदायगी नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और सौहार्द का प्रतीक बनकर उभरा।
निष्कर्ष: उर्स बना इंसानियत और रूहानियत का संगम
हज़रत मोहम्मद इलाही शहीद बाबा रह.अ. का यह 101वां सालाना उर्स न सिर्फ आस्था का प्रतीक बना, बल्कि इसमें मौजूद हर इंसान के दिल में मोहब्बत, भाईचारा और इंसानियत की लौ जगा गया।
ऐसे आयोजन जब भी होते हैं, तो वे हमें याद दिलाते हैं कि मज़हब का मक़सद नफरत फैलाना नहीं, बल्कि इंसान को इंसान से जोड़ना है। आशा है कि आने वाले वर्षों में यह आयोजन और भव्यता के साथ आयोजित होगा।