
रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली | Kadak Times
रायबरेली में महिला सुरक्षा और न्याय व्यवस्था को लेकर एक चिंताजनक मामला सामने आया है, जहां एक पीड़िता महिला बार-बार शिकायत करने के बावजूद अब तक न्याय नहीं पा सकी है। मामला महिला आयोग और 181 हेल्पलाइन नंबर की निष्क्रियता से जुड़ा है। जहां एक ओर सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जब कोई महिला ज़मीन पर अपने हक के लिए लड़ती है, तो उसे केवल तारीखें और आश्वासन ही मिलते हैं।
क्या है मामला?
रायबरेली की एक महिला ने अपने पति और ससुराल पक्ष पर दहेज उत्पीड़न, मारपीट और प्रताड़ना के आरोप लगाए। उसने स्थानीय थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई। आरोप है कि इसके बाद उसे घर से निकाल दिया गया और अब वह अपने ससुराल में वापस रहना चाहती है। इसके लिए उसने महिला आयोग और 181 हेल्पलाइन दोनों का सहारा लिया।
महिला आयोग का दोहरा रवैया
शुरुआत में मामला सुनने पहुंचीं महिला आयोग की सदस्य पूनम द्विवेदी ने पीड़िता को भरोसा दिलाया कि आयोग हर हाल में उसे ससुराल में वापस भिजवाने का प्रयास करेगा। मीडिया के सामने भी उन्होंने बयान दिया कि पुलिस को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए जा चुके हैं।
लेकिन 24 घंटे के अंदर ही महिला आयोग की राय और रवैया पूरी तरह बदल गया। आयोग की सदस्य ने महिला से यह कहते हुए हाथ पीछे खींच लिए कि “जब तुमने पति पर पांच केस दर्ज कर दिए हैं, तो वह तुम्हें घर में क्यों रखेगा?”
इस जवाब से महिला पूरी तरह टूट गई। उसे वापस भेज दिया गया और उसके साथ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
हेल्पलाइन 181 भी बेअसर
महिला ने 181 महिला हेल्पलाइन पर भी कई बार शिकायत की, लेकिन वहां से भी सिर्फ एक शिकायत नंबर देकर मामला बंद कर दिया गया। कोई फॉलो-अप नहीं हुआ, न ही कोई अधिकारी पीड़िता से मिला। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब पीड़िता को कोई राहत ही नहीं मिलनी है तो ये हेल्पलाइन और आयोग किस काम के हैं?
क्या आयोग केवल पंचायत जैसा मंच बनकर रह गया है?
महिला आयोग का गठन महिलाओं को कानूनी और सामाजिक सुरक्षा देने के उद्देश्य से किया गया था। लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि यह केवल औपचारिक सुनवाई करने और आश्वासन देने तक सीमित रह गया है। जमीन पर कोई प्रभावी निर्णय या कार्रवाई देखने को नहीं मिलती।
पीड़िता की आपबीती
महिला ने कहा, “मैंने हर जगह आवेदन किया, महिला आयोग में कई बार चक्कर लगाए, हेल्पलाइन पर कॉल की। लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली। मैं चाहती हूं कि मुझे अपने ससुराल में रहने का अधिकार मिले।”
यह दर्द सिर्फ उसी महिला का नहीं, बल्कि उन सैकड़ों महिलाओं का है जो हर दिन सिस्टम से न्याय की उम्मीद लगाती हैं।
जिम्मेदारी तय होनी चाहिए
इस पूरे मामले में जिम्मेदारी किसकी है? महिला आयोग की, पुलिस की, या उस सिस्टम की जो केवल दिखावे के लिए काम कर रहा है? जब कोई आयोग सदस्य खुद पहले सख्त निर्णय की बात करे और फिर अपने बयान से पलट जाए, तो उससे जनता का भरोसा टूटता है।
ज़रूरी सवाल
- क्या महिला आयोग की सुनवाई सिर्फ दिखावे की होती है?
- क्या 181 हेल्पलाइन केवल नंबर देने तक ही सीमित है?
- क्या ऐसी घटनाएं महिलाओं में सिस्टम के प्रति अविश्वास नहीं बढ़ाएंगी?
- कब तक महिलाएं अपने ही अधिकार के लिए भटकती रहेंगी?
निष्कर्ष
रायबरेली की यह घटना एक उदाहरण है जो दिखाती है कि महिला आयोग और हेल्पलाइन जैसे संस्थान अगर सक्रिय रूप से काम न करें तो महिलाओं को न्याय मिलना नामुमकिन हो जाता है। ज़रूरत है कि ऐसे मामलों में आयोग निष्पक्ष, पारदर्शी और संवेदनशील ढंग से काम करे।