
“अगर मेरी हत्या भी हो जाए, तो क्या ये सिर्फ पति-पत्नी का विवाद रहेगा?” – रायबरेली की महिला की करुण पुकार
रिपोर्टर : संदीप मिश्रा । रायबरेली
रायबरेली जिले की एक पीड़ित महिला ने अपने ही पति, जो कि एक सरकारी लेखपाल हैं, पर गंभीर आरोप लगाते हुए स्थानीय प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला सलोन तहसील का है, जहां तैनात लेखपाल पंकज वर्मा पर उनकी पत्नी विजय लक्ष्मी वर्मा ने घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, और जानलेवा हमले के आरोप लगाए हैं। महिला का कहना है कि उन्होंने थाना, तहसील से लेकर जिले के तमाम आलाधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई है, लेकिन हर जगह से निराशा ही हाथ लगी।
क्या वाकई ‘पति-पत्नी का विवाद’ है, या जानलेवा साजिश?
विजय लक्ष्मी वर्मा, जो रायबरेली शहर कोतवाली क्षेत्र की निवासी हैं, कहती हैं कि उनके पति पंकज वर्मा, जो सलोन तहसील में लेखपाल पद पर कार्यरत हैं, ने शादी के बाद से ही उन पर दहेज को लेकर मानसिक और शारीरिक अत्याचार शुरू कर दिए। इतना ही नहीं, महिला का आरोप है कि उनके पति ने दो बार उन्हें जान से मारने की कोशिश भी की। इन दोनों घटनाओं की अलग-अलग एफआईआर दर्ज हैं और मुकदमे न्यायालय में विचाराधीन हैं।
प्रशासन की चुप्पी और सिस्टम की नाकामी
जब पीड़िता सलोन उपजिलाधिकारी कार्यालय पहुंचीं और तहसीलदार से अपनी आपबीती साझा की, तो उन्हें जवाब मिला – “यह तो पति-पत्नी का आपसी मामला है, इसमें विभागीय कार्यवाही संभव नहीं।” इस उत्तर से आहत विजय लक्ष्मी ने सवाल किया –
“अगर मेरा पति मेरी हत्या कर दे, तब भी क्या इसे सिर्फ पति-पत्नी का विवाद कहा जाएगा?”
यह सवाल सिर्फ उनकी पीड़ा नहीं, बल्कि उस सिस्टम पर सवाल है जो सरकारी पद पर बैठे आरोपियों को बचाता नजर आता है।
लेखपाल के खिलाफ क्या हैं आरोप?
- दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज
- दो बार जानलेवा हमला – दोनों पर मुकदमे दर्ज और कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल
- पद के दुरुपयोग का आरोप – जांच में प्रभाव डालने और रिपोर्ट बदलवाने की कोशिश
- माननीय न्यायालय में बयान देने के दिन भी मारपीट की घटना दर्ज
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क्या कहता है कानून?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं:
- धारा 498A – दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करना
- धारा 323/504/506 – मारपीट और धमकी
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act, 2005) – महिला की सुरक्षा का अधिकार
इन धाराओं के अंतर्गत किसी भी महिला को उसके पति या ससुराल पक्ष द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर सीधी कानूनी कार्यवाही का अधिकार है। यदि आरोपी सरकारी कर्मचारी हो तो विभागीय जांच और सस्पेंशन की कार्यवाही भी की जा सकती है।
समाज को चाहिए जवाब
आज का समाज, जहां महिला सशक्तिकरण, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे नारे दिए जाते हैं, वहीं न्याय की गुहार लगाती एक महिला को केवल ये कहकर टाल देना कि “ये पति-पत्नी का मामला है”, क्या समाज और सिस्टम दोनों की विफलता नहीं है?
निष्कर्ष
विजय लक्ष्मी वर्मा की कहानी न सिर्फ एक महिला की पीड़ा है, बल्कि ये भारत के सिस्टम की खामियों और न्याय में देरी की सच्चाई को उजागर करती है। यह मामला बताता है कि कानून का डर और इंसाफ की उम्मीद सिर्फ कागजों तक सीमित है, जब तक पीड़ित को समय पर न्याय न मिले। ऐसे में ये जरूरी है कि प्रशासन इस पर तत्काल संज्ञान ले, आरोपी की विभागीय जांच हो और पीड़िता को उचित सुरक्षा व न्याय सुनिश्चित किया जाए।
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