प्रदीप शुक्ला : लखनऊ
भारतीय परंपरा में पौराणिक प्रसंग केवल कहानियाँ भर नहीं हैं, बल्कि उनमें गहन जीवन-दर्शन और समाज के लिए मार्गदर्शन छिपा होता है। ऐसा ही एक प्रसंग है—जब वसुदेव ने शिशु कृष्ण को सिर पर उठाकर उफनती यमुना पार की। यह केवल आस्था की गाथा नहीं, बल्कि हमें यह याद दिलाने वाला सूत्र है कि चाहे संकट कितना भी कठिन क्यों न हो, उसका सामना करने के लिए पहला कदम साहस और कर्म का होना चाहिए।
वसुदेव भली-भाँति जानते थे कि यमुना की तेज लहरें अपने आप नहीं थमने वालीं। यदि वे किनारे पर खड़े रहते और किसी चमत्कार की प्रतीक्षा करते, तो शायद कभी पार नहीं उतर पाते। उन्होंने साहस किया, पहला कदम बढ़ाया और जल में उतरे। तभी चमत्कार हुआ—यमुना ने उनके चरण छूकर शांत होने का आशीर्वाद दिया।
आज भारत भी अनेक चुनौतियों से घिरा है। भ्रष्टाचार, असमानता, बेरोज़गारी, महँगाई, प्रदूषण, जलवायु संकट और लोकतंत्र पर मंडराते खतरे—ये सब लहरें उतनी ही डरावनी हैं, जितनी वसुदेव ने यमुना में देखी थीं। प्रश्न यही है—क्या हम किनारे पर खड़े रहकर इंतज़ार करेंगे, या साहस जुटाकर पहला कदम उठाएँगे?
लोकतंत्र में जनता का साहस ही सबसे बड़ा हथियार है। यदि नागरिक केवल शिकायत करेंगे, दोष देंगे और नेताओं से चमत्कार की उम्मीद रखेंगे, तो कभी कोई यमुना शांत नहीं होगी। परिवर्तन तभी आएगा, जब समाज स्वयं आगे बढ़े—
- भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करे,
- पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी उठाए,
- शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकारों के लिए संघर्ष करे,
- और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाए।
यही कसौटी राजनीति के सामने भी है। शासन और नेता अक्सर किनारे पर खड़े रहकर समस्याओं के अपने आप सुलझ जाने का इंतज़ार करते हैं। लेकिन ठहर जाना ही सबसे बड़ी निष्क्रियता है। वसुदेव का संदेश यही है कि संकट केवल कर्म से पार होते हैं, दोषारोपण से नहीं।
यह प्रसंग हमें तीन बातें सिखाता है—
- चाहे समाज हो या सत्ता, समाधान तभी निकलता है जब पहला कदम साहसपूर्वक उठाया जाए।
- ईश्वर, सत्य और समय की शक्ति उन्हीं के साथ खड़ी होती है जो अपने हिस्से का कर्तव्य निभाते हैं।
- भारत को अपनी यमुनाओं से पार कराने के लिए केवल नारों और वादों से नहीं, बल्कि कर्म और साहस से काम लेना होगा।
वसुदेव की गाथा यह स्पष्ट करती है कि विश्वास और कर्म का संगम ही इतिहास की दिशा बदल देता है।
आज के समाज और राजनीति के लिए यही सबसे बड़ा संदेश है—
“किनारे पर खड़े रहकर यमुना कभी पार नहीं होती।”






