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सर्जिकल स्ट्राइक्स की असल परिभाषा: जब सेना लड़ी और राजनीति चुप रही

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सर्जिकल स्ट्राइक्स की असल परिभाषा: जब सेना लड़ी और राजनीति चुप रही

Pradeep Shukla, Ayodhya
भारत-पाकिस्तान सीमा पर संघर्ष कोई नई बात नहीं है। दशकों से हमारे जवान LOC पर अदम्य साहस का प्रदर्शन करते रहे हैं। लेकिन जब सैन्य कार्रवाइयों को राजनीतिक रंग देकर जनभावनाओं का साधन बनाया जाए, तब यह प्रश्न उठता है कि देश की सुरक्षा—क्या वह मात्र चुनावी उपकरण बनकर रह जाएगी?

“ऑपरेशन जिंजर” (2011) की सच्चाई, और उसके इर्द-गिर्द फैले मौन को समझना आज की राजनीति और सैन्य मर्यादा की तुलना के लिए अत्यंत आवश्यक है।

I. ऑपरेशन जिंजर: सीमाओं के पार की चुपचाप की गई वीरता

घटना का मूल: 30 जुलाई 2011 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर में पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम (BAT) ने घात लगाकर भारतीय सेना के दो जवानों — लांस नायक हेमराज और लांस नायक सुधाकर सिंह — की निर्मम हत्या की और उनके सिर काटकर ले गए। यह सेना के लिए असहनीय अपमान था।

जवाबी कार्रवाई: इसके दो हफ्ते बाद, अगस्त 2011 में भारतीय सेना ने “ऑपरेशन जिंजर” को अंजाम दिया — एक गोपनीय क्रॉस-बॉर्डर सर्जिकल ऑपरेशन, जिसमें भारत ने पाकिस्तान के तीन चौकियों पर हमला कर कम-से-कम तीन पाकिस्तानी सैनिकों के सिर काटे और तीन को घायल किया।

नेतृत्व: इस ऑपरेशन की योजना मेजर जनरल एस.के. चक्रवर्ती के नेतृत्व में उत्तरी कमान द्वारा बनाई गई थी।
इसे 7 सिख और 20 डोगरा रेजीमेंट की टुकड़ियों ने अंजाम दिया।

II. सर्जिकल स्ट्राइक की परिभाषा और दो दृष्टिकोण

सामरिक परिभाषा:
एक सर्जिकल स्ट्राइक वह सैन्य कार्रवाई है जिसमें निशाना सीमित और सटीक होता है, ताकि सैन्य और राजनीतिक संदेश स्पष्ट हो जाए, लेकिन टकराव व्यापक न हो।

2011 बनाम 2016: दो मॉडल, दो दृष्टिकोण

| पहलू | ऑपरेशन जिंजर (2011) | सर्जिकल स्ट्राइक (2016) |
| ————— | ——————- | ———————————— |
| उद्देश्य | बदले की कार्रवाई | आतंकवादी ठिकानों का विध्वंस |
| प्रचार | पूर्णतः गोपनीय | व्यापक सरकारी प्रचार |
| राजनीति से दूरी | पूरी तरह | चुनावी विमर्श में प्रमुख |
| मीडिया कवरेज | शून्य | लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस, फिल्म निर्माण |

III. सैन्य विशेषज्ञों की राय

लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) डी.एस. हुड्डा: “2016 की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से इन कार्रवाइयों का राजनीतिकरण हुआ है। सेना की कार्रवाइयों को चुनावी विमर्श का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।”

मेजर जनरल (से.नि.) एस.के. चक्रवर्ती (ऑपरेशन जिंजर के सूत्रधार): “हमने वह किया जो हमारे जवानों के सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक था, लेकिन हमने यह नहीं चाहा कि यह कार्रवाई मीडिया शो बन जाए।”

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन: “असली शक्ति उस कार्रवाई में होती है जो चुपचाप की जाती है। यदि हर कार्रवाई का ढोल पीटा जाए तो वह सैन्य संतुलन और रणनीति को नुकसान पहुंचा सकती है।”

IV. राजनीति और राष्ट्रहित: क्या संतुलन टूट रहा है?

2014 के बाद से सर्जिकल स्ट्राइक का उपयोग चुनावी हथियार के रूप में बढ़ा है। राजनीतिक दल अब सेनाओं की कार्रवाइयों को ‘सबूत’ और ‘क्रेडिट’ की होड़ में खींच रहे हैं। यह न केवल सैन्य नैतिकता के खिलाफ है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की गंभीरता को भी प्रभावित करता है।

सवाल यह नहीं है कि कार्रवाई कब हुई — सवाल यह है कि क्या उसे जनता की सहमति के नाम पर, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए, प्रस्तुत किया जाना चाहिए?

भारतीय सेना की वीरता किसी प्रमाण की मोहताज नहीं। लेकिन जब देश की सुरक्षा पर खड़े किए गए पराक्रम को राजनीतिक बैनर और पोस्टर बना दिया जाता है, तो वह पराक्रम भी प्रश्नों के घेरे में आ जाता है। “ऑपरेशन जिंजर” की चुप्पी और “सर्जिकल स्ट्राइक 2016” का शोर – यह दो युगों की तुलना नहीं, बल्कि नीतियों और नैतिकताओं का द्वंद्व है।

हमें तय करना होगा:
क्या सेना के सम्मान को राजनीति से बचाना होगा? या उसे प्रचार की सीढ़ी बना देना चाहिए?


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