रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, कड़क टाइम्स
रायबरेली। यह खबर सुनकर हर नागरिक का सिर शर्म से झुक जाएगा कि जिस धरती ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जन्म दिया, उसी धरती पर आज एक ऐसे युगपुरुष की स्मृति का प्रतीक शिलापट्ट लोगों के कदमों के नीचे पड़ा है। रायबरेली के रफी अहमद किदवई पार्क से लेकर बस अड्डा, जहानाबाद चौकी होते हुए रतापुर नरेश होटल तक जाने वाले मार्ग का नाम प्रदेश सरकार द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, शिक्षाविद्, पूर्व सरकारी वकील और पूर्व मंत्री स्वर्गीय वसी नकवी के नाम पर रखा गया था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और बिजली विभाग की मनमानी ने उनकी स्मृति का अपमान कर दिया। बस अड्डा चौराहे पर लगाया गया शिलापट्ट बिजली विभाग के कर्मचारियों ने तोड़कर नाली के किनारे फेंक दिया, जबकि रतापुर चौराहे नरेश होटल के सामने लगा शिलापट्ट रोड चौड़ीकरण के समय तोड़कर गायब कर दिया गया। आज यह नजारा देखकर स्थानीय लोग और परिजन बेहद आहत हैं।
स्वर्गीय वसी नकवी वह शख्सियत थे जिनका नाम रायबरेली ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था। वे एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से थे और स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि उनके निधन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी, तत्कालीन मुख्यमंत्री एन.डी. तिवारी, श्रीमती सोनिया गांधी, राज्यपाल और कई मंत्रीगण उनके आवास पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। यह किसी साधारण व्यक्ति का नहीं बल्कि एक ऐसी महान विभूति का सम्मान था जिसने समाज और राजनीति दोनों को दिशा देने का काम किया।
आज दुखद यह है कि जिस मार्ग को उनके नाम पर समर्पित किया गया था, उसकी पहचान मिटा दी गई है। बस अड्डा चौराहे पर तोड़कर फेंका गया शिलापट्ट नाली के पास धूल और कीचड़ में पड़ा हुआ लोगों के पैरों तले रौंदा जा रहा है। रतापुर चौराहे का शिलापट्ट तो रोड चौड़ीकरण की भेंट चढ़ गया और आज उसकी कोई निशानी भी शेष नहीं है। यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण है बल्कि स्वतंत्रता सेनानी की स्मृति का भी अपमान है।
स्वर्गीय वसी नकवी की बहू श्रीमती सुहेला नकवी, पोते मीसम नकवी, सलमान नकवी एडवोकेट, वसी अज़हर नकवी, अज़रा नकवी और मुजतबा नकवी एडवोकेट ने इस पूरे प्रकरण पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। उनका कहना है कि यह केवल हमारे परिवार का नहीं बल्कि पूरे रायबरेली और उन सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना जीवन न्यौछावर किया। परिवार ने जिला प्रशासन और शासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की है और यह सुनिश्चित करने को कहा है कि शिलापट्टों को पुनः स्थापित किया जाए और उनकी उचित देखरेख की जाए।
स्थानीय नागरिकों ने भी इस घटना की निंदा की है। उनका कहना है कि प्रशासन की जिम्मेदारी है कि ऐसे ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्व के प्रतीकों को सुरक्षित रखा जाए। यह बेहद शर्मनाक है कि जिस सेनानी ने समाज को शिक्षा, राजनीति और स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया, उसकी स्मृति का प्रतीक नाली में पड़ा है और प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है।
रायबरेली के बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों ने भी कहा कि अगर हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों और पुरखों का सम्मान नहीं कर पाए तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहद गलत संदेश होगा। आज जरूरत है कि शासन-प्रशासन न केवल इस गलती को सुधारे बल्कि आगे से ऐसे स्मृति प्रतीकों को सुरक्षित और संरक्षित करने की ठोस व्यवस्था भी करे।
परिवार और स्थानीय लोगों की अपील है कि जिला प्रशासन तुरंत शिलापट्ट को पुनः स्थापित करे और दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। यह केवल एक पत्थर का सवाल नहीं है, बल्कि यह उन मूल्यों और त्याग का सम्मान है जिनकी बदौलत आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं।