रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा
रायबरेली, 18 जून 2025:
देश को टीबी मुक्त भारत (TB Mukt Bharat) बनाने की दिशा में एक ठोस पहल करते हुए AIIMS रायबरेली की एक विशेष टीम ने रायबरेली जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में टीबी जन-जागरूकता और शोध सर्वेक्षण अभियान को अंजाम दिया। यह अभियान भारत सरकार के राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (National Tuberculosis Elimination Program – NTEP) के अंतर्गत चलाया गया।
इस अभियान के अंतर्गत एम्स की टीम ने सोथी, बावन बल्ला बुजुर्ग, हरदासपुर, बुधनपुर, बंदीपुर और सिधौना जैसे गांवों का दौरा किया और लोगों को टीबी (Tuberculosis) से जुड़ी आवश्यक जानकारियाँ प्रदान कीं। टीम का उद्देश्य था कि ग्रामीणों को समय रहते टीबी के लक्षण पहचानने, निःशुल्क जांच करवाने और उपचार की सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया जाए।
स्वास्थ्य और शोध की अनूठी पहल
इस विशेष अभियान की अगुवाई कर रही थीं डॉ. हिमांशी शर्मा, जो इस प्रोजेक्ट की प्रमुख रिसर्चर हैं। उनके साथ डॉ. आदर्श पांडेय और डॉ. अभिनव कटारिया, दोनों मेडिकल इंटर्न, ने गांव-गांव जाकर लोगों से संवाद किया और टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (TPT – TB Preventive Therapy) के महत्व को सरल भाषा में समझाया।
डॉ. हिमांशी ने ग्रामीणों को बताया कि टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी एक एहतियाती उपचार प्रक्रिया है, जो उन लोगों को दी जाती है जो किसी टीबी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहते हैं, लेकिन स्वयं अभी संक्रमित नहीं हुए हैं। इसका उद्देश्य यह होता है कि संभावित संक्रमण को फैलने से पहले ही रोक दिया जाए।
डॉ. आदर्श और डॉ. अभिनव ने बताया कि लोगों में आज भी टीबी को लेकर भ्रम है, और जागरूकता की कमी के कारण वे समय पर इलाज नहीं ले पाते। ऐसे में यह जरूरी है कि लोग टीबी के लक्षणों को पहचानें और बिना देरी जांच करवाएं।
जमीनी स्तर पर सहयोग: करुणा शंकर मिश्रा की महत्वपूर्ण भूमिका
इस अभियान की सफलता में वरिष्ठ उपचार पर्यवेक्षक करुणा शंकर मिश्रा ने विशेष योगदान दिया। उन्होंने न सिर्फ टीम को क्षेत्रीय सहयोग प्रदान किया, बल्कि स्वयं भी ग्रामीणों से संवाद कर उन्हें निःशुल्क जांच, दवा और पोषण सहायता के बारे में जानकारी दी। मिश्रा ने बताया कि सरकार द्वारा टीबी मरीजों को मुफ्त इलाज के साथ 500 रुपये प्रति माह की आर्थिक सहायता भी दी जा रही है।
उनका कहना है कि, “अगर हम समय पर लक्षणों की पहचान कर लें, तो टीबी का इलाज पूरी तरह संभव है। लेकिन डर और जानकारी की कमी के कारण लोग अक्सर देर कर देते हैं।”
जन सहयोग ने बढ़ाया हौसला
इस अभियान को गांवों में जबरदस्त समर्थन मिला। महिलाएं, बुजुर्ग और युवा – सभी ने टीम के साथ मिलकर कार्यक्रम में हिस्सा लिया। लोगों ने सवाल पूछे, दवाओं और जांच प्रक्रिया के बारे में जानकारी ली और टीम का आभार भी व्यक्त किया।
कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर हर्षित जैन, अनीता, अंजली वर्मा, दिव्यांशु वर्मा और रामबली की मौजूदगी में कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाया गया। इन सभी स्वास्थ्य कर्मियों ने गांवों में व्यवस्था और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सोशल मीडिया पर भी गूंजा अभियान
इस अभियान की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। #TBTherapy, #TBFreeIndia, #AIIMSRaebareli जैसे हैशटैग्स के साथ लोग इस पहल की तारीफ कर रहे हैं। स्वास्थ्य से जुड़े पेज और मेडिकल एक्सपर्ट्स इस अभियान को community-based awareness model के तौर पर देख रहे हैं।
निष्कर्ष: जागरूकता से ही टीबी मुक्त भारत का सपना साकार
AIIMS रायबरेली की यह पहल इस बात का प्रमाण है कि अगर चिकित्सा संस्थान, सरकारी योजनाएं और आम जनता मिलकर काम करें, तो टीबी जैसी गंभीर बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है। शोध और जागरूकता के संयोजन से जो मॉडल इस अभियान में देखा गया, वह देशभर में अपनाया जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर face-to-face संवाद स्थापित करना, दवाओं की सही जानकारी देना और इलाज के लिए प्रेरित करना — यह सभी प्रयास टीबी उन्मूलन की दिशा में एक मजबूत कदम हैं। यदि ऐसी मुहिम अन्य जिलों में भी चलायी जाए, तो 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य पूरी तरह संभव हो सकता है