रिपोर्ट: संदीप मिश्रा | रायबरेली, उत्तर प्रदेश | कड़क टाइम्स
रायबरेली के डलमऊ थाना क्षेत्र में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों को लेकर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। महिलाओं द्वारा की गई शिकायतों के बावजूद पुलिस की निष्क्रियता और लापरवाह रवैया अब आलोचना का केंद्र बन गया है। हाल ही में सामने आए मामलों में त्वरित कार्रवाई न होने, मेडिकल परीक्षण में देरी, और एफआईआर दर्ज न किए जाने की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे न केवल पीड़ित महिलाएं, बल्कि आम जनता भी असंतुष्ट है।
पीड़िताओं की बढ़ती हताशा: इंसाफ की राह में अड़चनें
डलमऊ थाना क्षेत्र में लगातार सामने आ रहे मामलों में स्पष्ट है कि महिलाओं द्वारा किए जा रहे दुष्कर्म और मारपीट के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। हाल ही में रुचि यादव नामक महिला ने डीएम कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई कि उनके पति रोहित को ससुराल पक्ष द्वारा बार-बार शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया और परिवार से बेदखल भी कर दिया गया। पांच बार मारपीट की घटनाएं हो चुकी हैं, फिर भी पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
रुचि यादव की शिकायत सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि यह उस पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है जहाँ महिलाएं थाना जाकर भी न्याय नहीं पा रही हैं।
थाना स्तर पर लापरवाही: दर्ज नहीं हो रहीं एफआईआर
स्थानीय महिलाओं और उनके परिवारों का कहना है कि जब भी वे डलमऊ थाने पर अपनी शिकायत लेकर पहुंचते हैं, उन्हें या तो टाल दिया जाता है या फिर लिखित तहरीर में बदलाव कर, मामले को हल्का बनाने की कोशिश की जाती है। कई मामलों में एफआईआर दर्ज ही नहीं की जाती, जिससे अपराधियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं।
मेडिकल परीक्षण में देरी: न्याय प्रक्रिया कमजोर
अक्सर यह देखा गया है कि जब किसी महिला के साथ शारीरिक हिंसा या यौन उत्पीड़न की शिकायत होती है, तो मेडिकल जांच में देरी कर दी जाती है। मेडिकल रिपोर्ट ही वह मुख्य आधार होती है जिस पर न्याय प्रणाली काम करती है। लेकिन समय पर जांच न होने से सबूत खत्म हो जाते हैं और मामले कमजोर हो जाते हैं।
प्रशासन की चुप्पी से जनता में आक्रोश
हालांकि जिलाधिकारी तक शिकायतें पहुंचाई जा चुकी हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस और प्रभावी एक्शन नहीं लिया गया है। स्थिति यह है कि कई पीड़ित महिलाएं हताश होकर न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास खोती जा रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा पर उठते सवाल प्रशासन के रवैये को लेकर गहरी चिंता पैदा करते हैं।
समाज पर पड़ रहा असर: डर और अविश्वास का माहौल
इन घटनाओं का प्रभाव सिर्फ पीड़िता तक सीमित नहीं है। यह पूरे समाज में भय और अविश्वास का वातावरण बना रहा है। महिलाएं स्कूल, कॉलेज या कार्यस्थलों तक आने-जाने में असुरक्षित महसूस कर रही हैं। स्थानीय नागरिक समाज संगठनों और मीडिया ने इन मामलों को उठाना शुरू कर दिया है, लेकिन ठोस सुधार की अभी भी दरकार है।
समाधान और सुधार की आवश्यकता
स्थिति को देखते हुए अब वक्त आ गया है कि प्रशासन और पुलिस व्यवस्था में बदलाव किए जाएं। कुछ जरूरी सुझाव इस प्रकार हैं:
1. प्रत्येक शिकायत की समयबद्ध जाँच:
हर दर्ज की गई तहरीर पर 48 घंटे के अंदर प्राथमिक जाँच हो और पीड़ित को इसकी जानकारी दी जाए।
2. मेडिकल जाँच की अनिवार्यता:
दुष्कर्म व हिंसा के मामलों में पुलिस द्वारा पीड़िता को तुरंत मेडिकल टेस्ट के लिए भेजा जाए, जिससे प्रमाणिकता और निष्पक्षता बनी रहे।
3. फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना:
महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की सुनवाई के लिए अलग अदालतें बनाई जाएं जो त्वरित न्याय सुनिश्चित करें।
4. पारदर्शी एफआईआर प्रक्रिया:
थाने में एफआईआर दर्ज होते ही पीड़िता को उसकी कॉपी दी जाए और ऑनलाइन ट्रैकिंग की सुविधा हो।
5. सुरक्षा और परामर्श सेवाएं:
प्रत्येक थाने में महिला हेल्प डेस्क, 24×7 हेल्पलाइन, और काउंसलिंग के लिए ट्रेंड स्टाफ तैनात किए जाएं।
6. सामाजिक जागरूकता और मीडिया की भूमिका:
मीडिया को चाहिए कि वह इन मामलों को संवेदनशील ढंग से उठाए और जनजागरूकता फैलाने में सहयोग करे।







