नाबालिग को जहरीला पदार्थ खिलाने का आरोप, पुलिस पर मिलीभगत का आरोप

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रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, कड़क टाइम्स

रायबरेली जनपद के थाना डलमऊ क्षेत्र में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी है। आरोप है कि एक नाबालिग बच्ची को प्रसाद के नाम पर जहरीला पदार्थ खिलाकर उसकी हत्या करने की कोशिश की गई। मामला यहीं खत्म नहीं होता, बल्कि पीड़िता की मां का आरोप है कि पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने की बजाय खुद उसके घर में घुसकर तलाशी शुरू कर दी और विपक्षी पक्ष के साथ मिलकर उसे ही फँसाने की साजिश रचने लगी।

यह पूरा घटनाक्रम अब न सिर्फ जिले बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। आम लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या पुलिस वास्तव में जनता की रक्षक है या फिर आरोपियों के साथ खड़ी है?


शिकायत में गंभीर आरोप

पीड़िता की मां रेखा ने पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी और जिला विधिक प्राधिकरण में लिखित शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में उन्होंने साफ तौर पर आरोप लगाया है कि उनकी नाबालिग बेटी को गांव की ही एक महिला ने प्रसाद के बहाने जहरीला पदार्थ खिला दिया। जब उन्होंने इस पूरे मामले की शिकायत थाने में की, तो पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय खुद उनके घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी।

रेखा का कहना है कि तलाशी लेने के दौरान विपक्षी पक्ष की महिला सरोज पत्नी अंकित को भी पुलिस अपने साथ लेकर आई और उससे पूरा वीडियो बनवाया गया। यह सवाल उठता है कि आखिर किसी मामले में विपक्षी पक्ष को जांच का हिस्सा कैसे बनाया जा सकता है?


आरोपी बनाए गए पुलिसकर्मी भी

रेखा ने अपनी शिकायत में सिर्फ गांव वालों को ही नहीं बल्कि पुलिस अधिकारियों को भी आरोपी बनाया है। उनके मुताबिक, थाना प्रभारी डलमऊ, हल्का इंचार्ज नसरुद्दीन और पूरे हमराह पुलिसकर्मी इस पूरे मामले में विपक्षी से मिले हुए हैं।

शिकायत में प्रेम, गोल्डी, आशा पत्नी वासुदेव और सरोज पत्नी अंकित का नाम भी शामिल है। रेखा का आरोप है कि पुलिस जानबूझकर विपक्षी की मदद कर रही है और उनकी नाबालिग बेटी को न्याय दिलाने के बजाय पूरे परिवार को फँसाने की कोशिश कर रही है।


एक हफ्ते पुराना विवाद

गौरतलब है कि यह विवाद नया नहीं है। एक सप्ताह पहले भी रेखा ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी नाबालिग पुत्री को गांव की महिला आशा पत्नी वासुदेव ने संदिग्ध पदार्थ खिलाया है। उस समय भी पुलिस ने मामले को हल्के में लिया और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

रेखा का कहना है कि अगर पुलिस ने उसी समय गंभीरता से कार्रवाई की होती, तो शायद स्थिति यहां तक न पहुँचती।


स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया

इस घटना ने स्थानीय लोगों में गुस्सा भर दिया है। गांव के कई लोग खुलकर कह रहे हैं कि पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है। ग्रामीणों का मानना है कि जब एक मां अपनी नाबालिग बेटी के लिए न्याय की गुहार लगाती है, तो पुलिस को पूरी तरह पारदर्शिता बरतनी चाहिए। लेकिन यहां तो उल्टा पीड़ित परिवार पर ही दबाव बनाया जा रहा है।

कुछ ग्रामीणों ने यह भी कहा कि जब पुलिस विपक्षी के साथ मिलकर काम करेगी, तो आम जनता किससे उम्मीद रखेगी?


पुलिस प्रशासन पर सवाल

पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।

  • पहला सवाल यह है कि नाबालिग लड़की को प्रसाद के नाम पर जहरीला पदार्थ खिलाए जाने जैसी गंभीर वारदात को हल्के में क्यों लिया गया?
  • दूसरा सवाल, शिकायत मिलने के बावजूद एफआईआर दर्ज करने के बजाय पीड़िता के घर की तलाशी क्यों ली गई?
  • तीसरा और सबसे बड़ा सवाल, विपक्षी पक्ष की महिला से जांच का वीडियो क्यों बनवाया गया?

ये सभी सवाल सीधे-सीधे पुलिस की भूमिका और उसकी ईमानदारी पर सवालिया निशान खड़े करते हैं।


कानूनी पहलू

कानूनी जानकारों का कहना है कि नाबालिग को जहरीला पदार्थ खिलाने का मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 328 और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत दर्ज किया जाना चाहिए। साथ ही, चूंकि पीड़िता नाबालिग है, इसलिए POCSO Act के तहत भी केस दर्ज होना चाहिए।

अगर पुलिस इस पर सही तरीके से कार्रवाई नहीं करती है, तो पीड़िता की मां हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकती है।


जिला प्रशासन की भूमिका

अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं। पीड़िता की मां ने शिकायत सीधे जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक तक पहुंचाई है। सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन निष्पक्ष जांच कराएगा या मामला फाइलों में दबा दिया जाएगा?

स्थानीय स्तर पर प्रशासन की छवि पहले से ही सवालों के घेरे में है। अगर इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो यह मुद्दा प्रदेश स्तर तक गरमा सकता है।


निष्कर्ष

डलमऊ थाना क्षेत्र का यह मामला किसी साधारण विवाद से कहीं अधिक है। यह न सिर्फ एक नाबालिग बच्ची की जिंदगी से जुड़ा सवाल है, बल्कि पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर भी सीधा प्रश्नचिह्न है।

जनता की नज़र अब प्रशासन पर है कि वह कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ इस केस की जांच कराता है। अगर पुलिस पर लगे आरोप सही साबित होते हैं, तो यह पूरे विभाग के लिए शर्मनाक स्थिति होगी।


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