
रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश | कड़क टाइम्स
रायबरेली: एक पुलिस अधिकारी की ड्यूटी के दौरान मौत के बाद उसके परिवार में चल रही कानूनी और भावनात्मक लड़ाई ने प्रशासनिक गलियारों का ध्यान खींचा है। मृत दरोगा चमन सिंह के पिता ने आरोप लगाया है कि उनकी बहू ने बेटे के नाम स्वीकृत हुए मुआवजे की पूरी रकम—1 करोड़ 70 लाख रुपये—बिना किसी पारिवारिक सहमति के खुद ले ली और अब परिवार को उसका हिस्सा देने से इनकार कर रही है।
यह मामला सिर्फ पैसे का नहीं है, बल्कि एक परिवार के बिखरते रिश्तों और सिस्टम की खामियों को उजागर करता है।
ड्यूटी के दौरान हुआ हादसा
12 फरवरी 2025 को रायबरेली जिले के सेमरी चौकी में तैनात सब इंस्पेक्टर चमन सिंह एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। ड्यूटी के समय हुई इस घटना ने पूरे पुलिस विभाग को झकझोर दिया। चमन सिंह मूलतः बहराइच जिले के निवासी थे और अपने सेवाभाव के लिए विभाग में पहचाने जाते थे।
हादसे के बाद पुलिस महकमा और शासन की ओर से तय प्रक्रिया के तहत मुआवजे की राशि का प्रावधान किया गया। लेकिन इस राशि के वितरण को लेकर अब परिवार में विवाद खड़ा हो गया है।
पत्नी पर एकतरफा लाभ उठाने का आरोप
चमन सिंह के पिता अनिल कुमार सिंह का कहना है कि उनके बेटे की पत्नी पूजा सिंह हादसे के बाद अपने मायके चली गईं। उन्होंने न केवल परिवार से संपर्क खत्म कर लिया बल्कि अब जब शासन से आर्थिक सहायता मिली, तो वह रकम पूरी तरह अपने पास रख ली।
1 अगस्त 2025 को लखनऊ मुख्यालय में उन्हें 1.70 करोड़ रुपये का चेक सौंपा गया। अनिल सिंह का आरोप है कि इस राशि के भुगतान की उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई और ना ही इस पर पारिवारिक सहमति ली गई।
न्यायालय में पहले से दर्ज है वाद
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मृतक के परिजनों ने पहले ही बहराइच की सत्र अदालत में याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि पत्नी पूजा सिंह ने परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई और आर्थिक सहायता के लिए एकतरफा तौर पर आवेदन किया। मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसके बावजूद इतनी बड़ी रकम का भुगतान किया जाना कई सवाल खड़े करता है।
SP ऑफिस में लगाई इंसाफ की गुहार
अपने बेटे के साथ हुए अन्याय और खुद को दरकिनार किए जाने से आहत होकर अनिल कुमार सिंह ने रायबरेली पुलिस अधीक्षक कार्यालय में अपनी व्यथा रखी। उन्होंने अधिकारियों से पूरे मामले की जांच की मांग करते हुए कहा कि बेटे की शहादत के बाद उनका परिवार टूट गया और अब बेटा तो नहीं रहा, पर न्याय की उम्मीद ज़रूर बाकी है।
मामले में उभरते हैं गंभीर सवाल
- न्यायालय में मामला लंबित होने के बावजूद आर्थिक सहायता का सीधा भुगतान क्यों किया गया?
- क्या प्रशासन ने मुआवजे की राशि बांटने से पहले सभी वैध उत्तराधिकारियों की सहमति ली?
- यदि मुआवजा केवल पत्नी को मिला, तो माता-पिता के अधिकार की अनदेखी क्यों हुई?
सिस्टम और रिश्तों पर गंभीर सवाल
यह सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक बड़ा मूल्य आधारित प्रश्न भी है। जिस बेटे की नौकरी और बलिदान से पूरा परिवार जुड़ा था, उसकी मृत्यु के बाद सिर्फ पत्नी को ही उत्तराधिकारी मान लेना सामाजिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से अनुचित प्रतीत होता है।
Trading शब्दों में समझें तो
अगर इसे एक तरह का Human Emotional Trade समझें, तो इसमें ‘Asset’ है दरोगा की जान, ‘Investment’ है उसका कर्तव्य, ‘Return’ मिलना चाहिए था पूरे परिवार को, लेकिन ‘Profit’ सिर्फ एक व्यक्ति को मिला और बाकियों को loss।
यह पूरी घटना दर्शाती है कि रिश्तों और अधिकारों की ‘Valuation’ आज कितनी गिर गई है, और पैसा कैसे सब कुछ डॉमिनेट करने लगा है।
आगे की राह: समाधान और उम्मीद
मृतक के परिवार ने प्रशासन से निष्पक्ष जांच और न्याय की उम्मीद जताई है। यदि शासन और विभाग इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हैं, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है जहां शहादत के बाद परिवार में बिखराव हो।
इस मामले से पुलिस विभाग को सीख लेनी चाहिए कि मुआवजे जैसी संवेदनशील प्रक्रियाओं में सभी संबंधित पक्षों को सुना जाना जरूरी है।
निष्कर्ष:
यह मामला केवल एक परिवार का निजी विवाद नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए चेतावनी है कि अगर पारदर्शिता और न्याय को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो बलिदान का सम्मान पीछे छूट जाएगा। अब ज़रूरत है कानूनी और मानवीय दोनों दृष्टिकोण से इस मामले को गंभीरता से लेने की।
रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश | कड़क टाइम्स