रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, कड़क टाइम्स
रायबरेली। नवरात्र शुरू होते ही बाजारों में रौनक दिखाई देने लगती है। लोग खरीदारी में जुट जाते हैं और कारोबारी भी दीपावली तक की तैयारियां तेज कर देते हैं। इस भीड़-भाड़ और हलचल के बीच एक ऐसा कारोबार भी तेजी पकड़ लेता है जिसे लोग खुलेआम देख तो रहे हैं, मगर नजरअंदाज करने को मजबूर हैं। यह कारोबार है मिलावटी दूध और मिठाइयों का, जिसे जानकार “मीठा जहर” कहकर पुकारते हैं। हर साल आंकड़े बताते हैं कि त्योहारों के दौरान मिलावट का धंधा अपने चरम पर होता है, लेकिन कार्रवाई केवल दिखावे तक ही सीमित रह जाती है।
त्योहारों पर दूध, खोवा, पनीर और मिठाई की अचानक बढ़ी मांग यह सवाल खड़ा करती है कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में असली उत्पाद एक साथ उपलब्ध कहां से हो जाते हैं। जानकार मानते हैं कि इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए नकली दूध पाउडर, सिंथेटिक मिल्क और रसायनों से तैयार खोया व मिठाइयां बाजार में उतारी जाती हैं। उपभोक्ता अक्सर इनके चमकदार रंग और आकर्षक पैकेजिंग में फंस जाते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके शरीर में धीरे-धीरे जहर पहुंच रहा है।
जिले के लालगंज और गुरुबख्शगंज जैसे इलाकों में मिलावट का कारोबार लंबे समय से चर्चा में है। यहां कई बार छापेमारी और सैंपलिंग की कार्रवाई हुई है, लेकिन हर बार नतीजे वही निकलते हैं – शुरुआत में कुछ पैकेट ज़ब्त, कागजी कार्यवाही और उसके बाद सबकुछ फिर से पुराने ढर्रे पर। शहर के अन्य हिस्सों में भी यही हाल है। जब तक विभाग सक्रिय होता है, तब तक मिलावटी उत्पाद बाजार में बिक चुके होते हैं और त्योहार की मिठास के साथ लोगों के शरीर में उतर चुके होते हैं। यही वजह है कि लोग कहते हैं – “जो पकड़ा गया वही चोर, जो बच गया वही सिपाही।”
त्योहारों में सबसे ज्यादा बिकने वाली मिठाइयां जैसे रसगुल्ला, बर्फी, मिल्क केक और लड्डू मिलावटखोरों का आसान निशाना होती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन नकली उत्पादों में यूरिया, डिटर्जेंट, स्टार्च और सिंथेटिक केमिकल्स मिलाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। लंबे समय तक इनका सेवन करने से पेट, लिवर और किडनी की बीमारियां बढ़ने का खतरा रहता है, यहां तक कि गंभीर बीमारियों का भी खतरा होता है।
हर साल स्वास्थ्य विभाग और खाद्य सुरक्षा विभाग बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते हैं कि त्योहारों पर विशेष निगरानी रखी जाएगी। लेकिन हकीकत यही है कि कार्रवाई अक्सर देर से होती है। रिपोर्ट आने तक त्योहार खत्म हो जाते हैं और तब तक लोग इस “मीठे जहर” का सेवन कर चुके होते हैं।
उपभोक्ता भी इसमें कम जिम्मेदार नहीं हैं। बहुत से लोग जानते हुए भी केवल सस्ते और चमकदार सामान के लालच में मिलावटी उत्पाद खरीद लेते हैं। त्योहार की भीड़ और जल्दबाजी में लोग क्वालिटी पर ध्यान नहीं देते और यही लापरवाही पूरे परिवार की सेहत पर भारी पड़ जाती है।
इस पूरे मामले में बड़ा सवाल यही है कि जब विभाग को यह सबकुछ मालूम है तो समय रहते ठोस कार्रवाई क्यों नहीं होती। लालगंज और गुरुबख्शगंज ही नहीं बल्कि शहर के कई हिस्सों में यह कारोबार छोटे-छोटे कारखानों और घरों से चल रहा है। यहां तैयार होने वाला नकली दूध और खोया त्योहारों पर बाजार में आसानी से पहुंचा दिया जाता है।
त्योहारों की खुशियां हर साल मिलावटखोरों के कारण कड़वी हो रही हैं। अगर विभाग समय रहते सख्ती करे और उपभोक्ता भी सजग हों तो इस धंधे पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है। लोगों का मानना है कि केवल दिखावे की छापेमारी से बात नहीं बनेगी, असली जरूरत है निरंतर निगरानी और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की।
फिलहाल हालत यही है कि त्योहारों की चकाचौंध में लोग मिलावटी मिठाई खाने को मजबूर हैं और महकमा तब तक खामोश रहता है जब तक मामला सुर्खियों में नहीं आ जाता। सवाल यही है कि कब तक सेहत के साथ यह खिलवाड़ चलता रहेगा और कब विभाग नींद से जागकर इसे रोकने के लिए गंभीर कदम उठाएगा।





