
रिपोर्ट: संदीप मिश्रा | रायबरेली, उत्तर प्रदेश | Kadak Times
रायबरेली – जिले के डलमऊ थाना क्षेत्र के डंगरी गांव से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने पुलिस प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ग्रामीण महिला ने गांव के लेखपाल पंकज वर्मा और उसके भतीजे रिंकू लोध पर दुष्कर्म की कोशिश और धमकी देने का आरोप लगाया है, लेकिन पुलिस ने गंभीर धाराओं की जगह मात्र मामूली मारपीट की रिपोर्ट दर्ज की।
अब सवाल उठ रहा है — क्या सरकारी पद पर बैठे लोग कानून से ऊपर हो गए हैं? और अगर नहीं, तो पुलिस आखिर लेखपाल को क्यों बचा रही है?
क्या है पूरा मामला?
घटना 10 जुलाई 2025 की है, जब पीड़िता ने आरोप लगाया कि लेखपाल पंकज वर्मा और उसका भतीजा रिंकू लोध, जो अक्सर शराब के नशे में रहता है, उसके घर में जबरन घुस आए। महिला का दावा है कि दोनों ने उसके साथ दुष्कर्म की कोशिश की और असफल होने पर जान से मारने की धमकी देकर फरार हो गए।
पीड़िता ने जब डलमऊ थाने में शिकायत दर्ज करवाई, तो पुलिस ने गंभीर धाराएं लगाने की बजाय सिर्फ साधारण मारपीट का मुकदमा लिखा और मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
पुलिस की कार्यशैली पर उठे सवाल
इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा चर्चा पुलिस की भूमिका को लेकर हो रही है। सवाल यह है कि जब महिला ने स्पष्ट रूप से दुष्कर्म के प्रयास और धमकी की बात कही, तो उस पर IPC की धारा 376/511, 354, 506 जैसी गंभीर धाराएं क्यों नहीं लगाई गईं?
क्या यह पुलिस की लापरवाही है या लेखपाल के प्रभाव का असर?
यह वही समय है जब जिले में पुलिस अधीक्षक लगातार अनुशासन और कर्तव्य पालन की बात कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिलकुल उलट है।
धमकियों का सिलसिला जारी
इतना ही नहीं, पीड़िता का कहना है कि FIR दर्ज होने के बाद भी लेखपाल और उसका परिवार लगातार दबाव बना रहे हैं।
पीड़िता ने बताया कि लेखपाल पंकज वर्मा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए 112 नंबर पर खुद कॉल किया, और पुलिस को पीड़िता के घर भेज दिया। साथ ही, वह खुद भी अपने माता-पिता और भाभी के साथ पीड़िता के घर गया और धमकी दी कि अगर वह पीछे नहीं हटी तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
यह घटना साफ दर्शाती है कि एक सरकारी कर्मचारी किस तरह से अपनी ताकत और सिस्टम का दुरुपयोग कर रहा है।
महिला ने की सुरक्षा की मांग
लगातार डर और मानसिक उत्पीड़न के चलते पीड़िता ने अब जिले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से अपनी और अपने परिवार की जान-माल की सुरक्षा की मांग की है। उसका कहना है कि अगर उसके साथ कोई अनहोनी होती है, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी लेखपाल और स्थानीय थाना पुलिस की होगी।
कानून व्यवस्था की असली तस्वीर
यह मामला सिर्फ एक महिला के साथ हुए अपराध का नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था की गिरती साख का प्रतीक बन गया है।
- क्या पुलिस का काम सिर्फ रसूखदारों को बचाना है?
- क्या आम नागरिक को न्याय पाने के लिए पहले सोशल मीडिया पर वायरल होना ज़रूरी है?
- और सबसे बड़ा सवाल – क्या एक महिला की आवाज़ सिर्फ इसलिए दबा दी जाती है क्योंकि आरोपी एक सरकारी अफसर है?
निष्पक्ष जांच की मांग
लोगों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि इस मामले में फोरेंसिक जांच, कॉल डिटेल्स और पीड़िता के बयान को आधार बनाकर दोबारा मुकदमा दर्ज किया जाए। साथ ही, पुलिसकर्मियों की भूमिका की स्वतंत्र जांच भी होनी चाहिए।
निष्कर्ष
डलमऊ के डंगरी गांव की यह घटना एक बार फिर यह दिखा गई कि जब तक पीड़िता की लड़ाई में प्रशासन निष्पक्ष नहीं होता, तब तक “न्याय” सिर्फ एक शब्द बनकर रह जाता है।
अब देखना यह है कि रायबरेली प्रशासन इस मामले को किस दिशा में ले जाता है –
क्या आरोपी लेखपाल पर कार्रवाई होती है या फिर सत्ता और सिस्टम का गठजोड़ एक बार फिर एक और पीड़िता को चुप करा देता है?