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झलकारी बाई जयंत्री में उठी गूंज: 22 नवंबर को राष्ट्रीय अवकाश की मांग तेज़—सकरा गाँव में दिखा जनसैलाब

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रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, कड़क टाइम्स

रायबरेली के राही विकास खंड के सकरा ग्राम सभा में वीरांगना झलकारी बाई की 195वीं जयंती इस बार सामान्य आयोजन नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक संदेश के रूप में मनाई गई। सुबह से ही गाँव में देशभक्ति और सम्मान का माहौल बना रहा। महिलाएँ, बुज़ुर्ग, युवा और बच्चे—हर वर्ग के लोग बड़ी संख्या में समारोह में शामिल हुए। मंच पर जब झलकारी बाई के जीवन और साहस का वर्णन किया गया, तो पूरा पंडाल तालियों की गूंज से भर गया।

मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे राष्ट्रीय कोरी समाज जागृति महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बेंचे लाल कोरी ने झलकारी बाई को “1857 की क्रांति की असली शेरनी” बताते हुए कहा कि उनका बलिदान किसी भी प्रकार से कम आंका नहीं जा सकता। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि “22 नवंबर को झलकारी बाई की जयंती पूरे देश में सम्मान से मनाई जाती है, ऐसे में इस दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित करना समय की मांग है।”

उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील करते हुए कहा कि झलकारी बाई के नाम पर राजकीय डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, विश्वविद्यालय, सरकारी भवन, बड़े पुल और जिलों के महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित किए जाएँ, ताकि नई पीढ़ी को उनके योगदान के बारे में जानकारी मिल सके। उन्होंने कहा कि झलकारी बाई का नाम सिर्फ किताबों तक सीमित न रहे, बल्कि लोगों के जीवन और पहचान का हिस्सा बने।

समारोह में आए युवाओं ने झलकारी बाई के सम्मान में जोरदार नारे लगाए—

“झलकारी बाई अमर रहें!”

“हमारी वीरांगना—हमारा गौरव!”

स्थानीय ग्रामीणों ने कहा कि झलकारी बाई ने 1857 की लड़ाई में जिस तरह से रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और अपनी जान जोखिम में डालकर अंग्रेजों को चकमा दिया, वह भारतीय इतिहास का सबसे साहसी अध्याय है। फिर भी, उन्हें इतिहास की किताबों में वह स्थान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। गाँव की महिलाओं ने कहा कि झलकारी बाई आज भी नारी शक्ति, साहस और नेतृत्व का प्रेरक प्रतीक हैं।

कार्यक्रम के बाद लोगों ने एकस्वर में यह मांग उठाई कि सरकार जल्द से जल्द उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करे, ताकि पूरा देश हर वर्ष इस दिन वीरांगना झलकारी बाई के साहस को याद कर सके। कई लोगों ने कहा कि यदि सरकार यह कदम उठाती है, तो यह समाज के हर वर्ग के लिए गर्व का पल होगा।

समारोह में आए बुज़ुर्गों ने अपनी बचपन की कहानियाँ और सुनी-सुनाई वीरगाथाएँ भी साझा कीं, जिससे माहौल और भी भावुक हो गया। युवाओं ने इसे “History with Pride” का नाम देते हुए कहा कि झलकारी बाई का नाम केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि आज के समाज की प्रेरणा है।

सकरा ग्राम सभा में मनाया गया यह जयंती समारोह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश और जन–आवाज़ की शुरुआत बन गया है। कार्यक्रम के बाद भी गाँव में देर रात तक लोग चर्चा करते रहे कि आने वाले वर्षों में झलकारी बाई की जयंती और भव्य स्तर पर मनाई जाएगी और सरकारी स्तर पर भी उनके सम्मान को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाएंगे।


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