गोण्डा पुलिस मुठभेड़: 6 जून तक आमजन से साक्ष्य और गवाहियों की मांग, मजिस्ट्रेट जांच प्रक्रिया में तेजी

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गोण्डा पुलिस मुठभेड़: 6 जून तक आमजन से साक्ष्य और गवाहियों की मांग, मजिस्ट्रेट जांच प्रक्रिया में तेजी

रिपोर्टर: आशीष श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ, उत्तर प्रदेश

गोंडा, 3 जून 2025।
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हाल ही में हुई एक पुलिस मुठभेड़ की घटना चर्चा का विषय बनी हुई है। यह मुठभेड़ 19 और 20 मई 2025 की रात को करनैलगंज थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम कादीपुर में घटित हुई थी। इस घटना में एक लाख रुपये का इनामी बदमाश सोनू पासी उर्फ भुर्रे पासी, जो कई संगीन आपराधिक मामलों में वांछित था, पुलिस की आत्मरक्षार्थ जवाबी कार्रवाई में मारा गया।

इस मुठभेड़ को लेकर मजिस्ट्रेटियल जांच की जा रही है, जिसके अंतर्गत अपर जिलाधिकारी (ADM) आलोक कुमार ने आम जनता से इस मामले में कोई भी मौखिक या लिखित गवाही, जानकारी या साक्ष्य 6 जून 2025 तक कार्यालय में प्रस्तुत करने की अपील की है। प्रशासन का कहना है कि यदि किसी नागरिक के पास इस घटना से जुड़ी कोई भी प्रासंगिक जानकारी है, तो वह उसे निसंकोच साझा करें।


पुलिस कार्रवाई की पृष्ठभूमि

पुलिस विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, यह मुठभेड़ गोपनीय सूचना के आधार पर की गई थी। वांछित अपराधी सोनू पासी, कादीपुर गांव निवासी था और उस पर हत्या, लूट, डकैती, आर्म्स एक्ट व गैंगस्टर एक्ट जैसे मामलों में कई गंभीर मुकदमे दर्ज थे। पुलिस को लम्बे समय से उसकी तलाश थी।

मुठभेड़ की रात पुलिस टीम जब उसे पकड़ने पहुंची, तो उसने भागने की कोशिश करते हुए पुलिस पर फायरिंग कर दी। जवाब में पुलिस को भी आत्मरक्षा में गोलियां चलानी पड़ीं, जिसमें उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। घटना के बाद वहां से एक देसी तमंचा और कई जिंदा कारतूस बरामद हुए।


क्यों की जा रही है मजिस्ट्रेट जांच?

उत्तर प्रदेश सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार, किसी भी पुलिस मुठभेड़ में अगर किसी अपराधी की मृत्यु होती है, तो उसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच अनिवार्य होती है। इस क्रम में गोंडा जिले की जिलाधिकारी के आदेश पर अपर जिलाधिकारी आलोक कुमार को मजिस्ट्रेट जांच अधिकारी नियुक्त किया गया है।

जांच का उद्देश्य है:

  • पुलिस कार्रवाई की सत्यता और वैधता की पुष्टि करना
  • यह देखना कि कहीं कानून का उल्लंघन तो नहीं हुआ
  • पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना
  • किसी भी प्रकार की जनसहभागिता को प्रोत्साहित करना

ADM आलोक कुमार ने कहा है, “मजिस्ट्रेट जांच प्रक्रिया पूर्णतया स्वतंत्र, निष्पक्ष और कानूनी दायरे में की जा रही है। किसी भी पक्ष को सुना जाएगा और हर गवाही को गंभीरता से लिया जाएगा।”


साक्ष्य देने की प्रक्रिया

यदि किसी व्यक्ति के पास इस मुठभेड़ से संबंधित कोई भी जानकारी, वीडियो, फोटो, ऑडियो रिकॉर्डिंग या चश्मदीद गवाही है, तो वह 6 जून 2025 तक निम्नलिखित माध्यमों से अपना पक्ष रख सकता है:

  1. लिखित आवेदन के माध्यम से
  2. मौखिक रूप से गवाही देकर
  3. डिजिटल फॉर्मेट में साक्ष्य प्रस्तुत कर

इसके लिए किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति सीधे अपर जिलाधिकारी कार्यालय, गोंडा में कार्यदिवसों में प्रातः 10 बजे से शाम 5 बजे तक पहुंच सकता है।


एनकाउंटर के बाद उत्पन्न जनसंदेह

पुलिस मुठभेड़ अक्सर संवेदनशील विषय होते हैं। समाज का एक वर्ग इसे कानून व्यवस्था की मजबूती का प्रमाण मानता है, जबकि दूसरा वर्ग इसे संविधानिक अधिकारों के उल्लंघन की संभावना के रूप में देखता है। इसलिए प्रशासन द्वारा मजिस्ट्रेट जांच की पहल एक स्वागतयोग्य कदम मानी जा रही है।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता विनोद तिवारी का कहना है, “पुलिस की कार्रवाई अगर सही है, तो उसे जांच से डरने की जरूरत नहीं। और अगर कहीं कोई त्रुटि हुई है, तो जांच से सच सामने आएगा।”

जनप्रतिनिधियों ने भी प्रशासन से अपील की है कि जांच पूरी पारदर्शिता और न्यायिक सिद्धांतों के अनुसार की जाए।


कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानून विशेषज्ञ अधिवक्ता रामनरेश मिश्रा बताते हैं कि “क्रिमिनल लॉ के अंतर्गत किसी भी मुठभेड़ के बाद जांच का उद्देश्य यह जानना होता है कि पुलिस द्वारा किया गया बल प्रयोग आवश्यक था या नहीं। यदि आवश्यक था, तो उसे उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन यदि नहीं, तो यह अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है।”

इसलिए मजिस्ट्रेट जांच में प्रस्तुत साक्ष्य और गवाहियों का बहुत अधिक महत्व है।


मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका

इस घटना को लेकर स्थानीय और सोशल मीडिया पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कुछ समाचार चैनलों ने इसे ‘एनकाउंटर स्पेशल’ का नाम दिया है, जबकि कुछ स्थानीय पोर्टल इसे फर्जी मुठभेड़ करार दे रहे हैं।

इस संदर्भ में, प्रशासन की यह पहल कि जनता खुद आगे आए और साक्ष्य साझा करे, अपने आप में ट्रांसपेरेंसी को बढ़ावा देने वाला कदम है।


निष्कर्ष

गोंडा की यह पुलिस मुठभेड़ कानून व्यवस्था और जन सुरक्षा से जुड़ा एक अहम मामला है। जहां एक ओर पुलिस की त्वरित कार्रवाई से अपराधियों में भय की भावना उत्पन्न होती है, वहीं दूसरी ओर जनता की भागीदारी और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार एक स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था की निशानी है।

6 जून 2025 तक साक्ष्य जमा कराने की अंतिम तिथि है। यदि आप इस घटना से संबंधित कुछ जानते हैं, तो आगे आएं और न्याय प्रक्रिया को मजबूती दें।


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