रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली
रायबरेली जिले में ईद-उल-अजहा का त्योहार पूरे शांति और सौहार्द के साथ मनाया गया। सुबह से ही लोगों में नमाज़ अदा करने और अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का जोश देखा गया। ईदगाह परिसर में हजारों की संख्या में नमाज़ी एकत्र हुए और उन्होंने प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए केवल परिसर के भीतर ही नमाज़ अदा की। प्रशासन की ओर से पहले ही स्पष्ट कर दिया गया था कि नमाज़ ईदगाह के बाहर नहीं होगी, और मुस्लिम समुदाय ने इस पर पूरी तरह सहयोग किया।
ईद की नमाज़ के दौरान पूरे इलाके में सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए थे। पुलिस, पीएसी, होमगार्ड, सिविल डिफेंस की टीमों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई और किसी भी अव्यवस्था की स्थिति को रोकने के लिए निरंतर गश्त की। हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए CCTV कैमरों के साथ-साथ ड्रोन से भी निगरानी की गई। प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अधीक्षक स्वयं मौके पर उपस्थित थे और पूरी व्यवस्था की निगरानी कर रहे थे।
नमाज़ के बाद लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दी। बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक, सभी में खुशी का माहौल था। लोग पारंपरिक पोशाकों में नजर आए और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर इस त्योहार की खुशियों को साझा किया। विभिन्न मोहल्लों में लोगों ने अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर त्योहार की रस्में निभाईं।
कुर्बानी का सिलसिला भी सुबह से ही शुरू हो गया था। लोगों ने अपने घरों या प्रशासन द्वारा चिन्हित स्थानों पर बकरों की कुर्बानी दी। कुर्बानी के बाद मांस को तीन हिस्सों में बांटा गया – एक हिस्सा खुद के लिए, एक रिश्तेदारों के लिए और एक हिस्सा गरीबों व जरूरतमंदों को देने की परंपरा निभाई गई। इस कार्य में खासतौर से युवाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और यह सुनिश्चित किया कि किसी को कोई असुविधा न हो।
इस अवसर पर जनपद के प्रमुख शिक्षाविद शशिकांत शर्मा ने मुस्लिम समुदाय को ईद की बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि समाज में भाईचारे और प्रेम का संदेश भी देता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि आज के दौर में सभी समुदायों को मिलजुलकर रहने और एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में भाग लेने की आवश्यकता है। उनका यह संदेश सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया और लोगों ने इसे सराहा।
ईद के दिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर लोगों ने त्योहार की तस्वीरें और वीडियो साझा किए। ‘#Eid2025Raebareli’, ‘#PeacefulEid’, ‘#BakridCelebration’ जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे। खासकर युवाओं में इसको लेकर काफी उत्साह देखा गया। लोगों ने अपने पारंपरिक पहनावे, परिवार के साथ बिताए लम्हों और दुआओं की तस्वीरें साझा कर इस त्योहार की रौनक को ऑनलाइन भी जिंदा रखा।
रायबरेली में धर्मगुरुओं ने भी लोगों को त्योहार के मूल भाव को समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि ईद-उल-अजहा हमें त्याग, संयम और भक्ति का पाठ सिखाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने आत्म-संयम और अनुशासन के माध्यम से समाज में शांति और संतुलन ला सकते हैं। धर्मगुरुओं ने यह भी अपील की कि लोग साफ-सफाई का ध्यान रखें और प्रशासन के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन करें।
जिला प्रशासन की भूमिका इस वर्ष विशेष रूप से सराहनीय रही। उन्होंने समय रहते सभी तैयारी पूरी की और हर स्तर पर समन्वय बनाए रखा। पुलिस कप्तान से लेकर तहसील स्तरीय अधिकारियों तक, सभी ने अपनी ड्यूटी को गंभीरता से निभाया और सुनिश्चित किया कि त्योहार शांतिपूर्वक संपन्न हो। किसी भी प्रकार की अफवाह, अफरा-तफरी या असुविधा की सूचना नहीं मिली, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि प्रशासन और जनता के बीच संवाद बेहतर बना रहा।
यह त्योहार रायबरेली में सिर्फ धार्मिक रस्मों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने एक सामाजिक संदेश भी दिया कि कैसे विविधता में भी एकता संभव है। सभी समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं और यह भरोसा जताया कि आगे भी इसी प्रकार सौहार्द बना रहेगा। शहर के कई हिस्सों में हिन्दू समुदाय के लोगों ने अपने मुस्लिम मित्रों और पड़ोसियों को मिठाई भेंट की और त्योहार की बधाई दी। यह भारत की साझा संस्कृति का जीवंत उदाहरण था।
सड़कें साफ-सुथरी रखी गईं, नगरपालिका ने पहले ही सफाई व्यवस्था दुरुस्त कर दी थी। कुर्बानी के बाद अवशेषों को व्यवस्थित तरीके से निस्तारित करने की व्यवस्था भी की गई थी। सभी ने सामूहिक प्रयास से यह सुनिश्चित किया कि शहर में स्वच्छता बनी रहे।
ऐसे माहौल में ईद-उल-अजहा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान बनकर रह गया, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय संदेश देने वाला दिन बन गया। सभी वर्गों के लोग इस पर्व में एक साथ नजर आए और यही भारतीय लोकतंत्र और समाज की खूबसूरती है। प्रशासन, धर्मगुरु, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिक – सभी ने मिलकर इस त्योहार को सफल बनाया।
रायबरेली की यह ईद मिसाल बनी है उन सभी जिलों के लिए, जो धार्मिक आयोजनों के दौरान व्यवस्था और शांति के बेहतर उदाहरण की तलाश करते हैं। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी यह सौहार्द और अनुशासन इसी तरह बना रहेगा और हर त्योहार एक सामाजिक एकता का प्रतीक बनेगा।
रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली