रिपोर्ट: संदीप मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश कड़क टाइम्स
| 07 सितम्बर 2025
रायबरेली जिले के डलमऊ थाना क्षेत्र से एक बेहद चौंकाने वाली और हैरान करने वाली खबर सामने आई है। यहां की पुलिस ने ऐसा रवैया अपनाया है कि अब लोग यह कहने पर मजबूर हो गए हैं – “अगर आपके ऊपर कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज है, तो समाज चाहे आपकी अस्मत लूट ले, बच्चों को जहर खिला दे, लेकिन पुलिस आपके पक्ष में खड़ी नज़र आएगी।”
यह पूरा मामला थाना डलमऊ के डंगरी गांव का है, जहां एक महिला रेखा पत्नी बाबूलाल ने आरोप लगाया है कि गांव की ही एक महिला आशा ने उसकी नाबालिग पुत्री को प्रसाद के नाम पर जहरीला पदार्थ देकर मारने की कोशिश की। बच्ची की हालत अचानक बिगड़ गई और उसे गंभीर अवस्था में जिला अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
प्रसाद में जहर? पुलिस का तर्क चौकाने वाला
पीड़िता रेखा का कहना है कि उसकी बेटी को खास तौर पर निशाना बनाया गया। लेकिन पुलिस का कहना है कि “गांव में सभी बच्चों को प्रसाद दिया गया, फिर सिर्फ तुम्हारी बच्ची को ही जहर क्यों दिया गया?”
पुलिस का यह बयान न केवल सवाल खड़े करता है बल्कि यह भी दिखाता है कि जहर खुरानी जैसे संगीन अपराध को भी हल्के में लिया जा रहा है।
यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि जब ट्रेन या बस में जहर खुरानी होती है तो अपराधी एक ही यात्री को टारगेट करता है, बाकी लोगों को नहीं। फिर डलमऊ पुलिस यह कैसे तय कर सकती है कि बच्ची को दिया गया प्रसाद जहरीला नहीं था या इसे साबित करने के लिए किस तरह के सबूत की जरूरत है?
गांव की दुश्मनी या पुलिस की लापरवाही?
डलमऊ पुलिस का कहना है कि दोनों परिवारों में पुरानी रंजिश है, इसलिए महिला झूठा आरोप लगाकर विरोधी परिवार को फंसाने की कोशिश कर रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या हर रंजिश का नतीजा झूठा आरोप ही होता है?
अगर बच्ची की हालत खराब हुई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तो यह कोई मामूली बात नहीं।
पीड़िता की दर्द भरी दास्तां
रेखा का कहना है कि गांव के लोग उसे किसी भी तरह से परेशान करना चाहते हैं। उसका पति और बेटा रोजगार के लिए परदेश गए हुए हैं। वह अकेली अपने दो छोटे बच्चों के साथ गांव में रहती है और समाज ने उसका जीना हराम कर रखा है।
उसका आरोप है कि कुछ समय पहले गांव के ही तीन लोग – रिंकू लोध, पंकज वर्मा और एक अन्य युवक – उसके घर में घुस आए और उसके साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। लेकिन पुलिस ने उसकी पुरानी हिस्ट्री देखते हुए इस पूरे मामले को सिर्फ मारपीट का केस बनाकर दर्ज किया।
आज वह केस न्यायालय में विचाराधीन है। लेकिन पीड़िता का कहना है कि पुलिस बार-बार उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि का हवाला देकर उसके खिलाफ खड़ी हो जाती है और आरोपियों को बचाने का रास्ता निकाल देती है।
पुलिस की दोहरी पॉलिसी पर उठ रहे सवाल
डलमऊ पुलिस पर सवाल उठना लाजमी है क्योंकि—
- जब जहर खुरानी ट्रेन या बस में होती है तो एक ही शिकार बनाया जाता है।
- लेकिन गांव की बच्ची पर हुए हमले को “रंजिश” कहकर टाला जा रहा है।
- महिला के साथ हुए दुष्कर्म प्रयास को पुलिस ने हल्का बना दिया।
लोग पूछ रहे हैं कि क्या डलमऊ पुलिस अब अपराधियों को खुली छूट दे रही है?
दलित और महिला सुरक्षा पर उठते सवाल
यह मामला सिर्फ एक गांव का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में महिला सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। अगर किसी महिला पर पहले कोई केस दर्ज हो चुका है, तो क्या इसका मतलब है कि उसकी शिकायतें आगे कभी सुनी ही नहीं जाएंगी?
दलित और गरीब वर्ग की महिलाएं पहले ही समाज में उपेक्षित रहती हैं, और जब पुलिस भी उनके खिलाफ खड़ी हो जाए तो न्याय मिलना और भी मुश्किल हो जाता है।
विशेषज्ञों की राय
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि—
- पुलिस का काम है तथ्यों की निष्पक्ष जांच करना, न कि पीड़िता की पृष्ठभूमि देखकर केस को कमजोर करना।
- जहर खुरानी और दुष्कर्म जैसे केस में FIR दर्ज करना और मेडिकल जांच कराना अनिवार्य है।
- पुरानी दुश्मनी को आधार बनाकर केस को खारिज करना संविधान और कानून की भावना के खिलाफ है।
क्या है आगे की राह?
यह केस अब न्यायालय में जाएगा और वहां से तय होगा कि सच्चाई किसकी है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पुलिस ने शुरुआत से ही निष्पक्षता दिखाई?
अगर पुलिस पहले से ही पीड़िता को दोषी मानकर चल रही है तो फिर न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
निष्कर्ष
डलमऊ पुलिस का यह रवैया न केवल रायबरेली जिले में बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा है।
आज गांव की एक महिला और उसकी बच्ची पीड़ित है, कल को यह रवैया किसी और के साथ भी हो सकता है।
लोकतंत्र और कानून का सबसे बड़ा आधार है “सबके लिए न्याय”, लेकिन डलमऊ पुलिस का ताज़ा फरमान यह बताता है कि अगर आप पहले से आरोपी हैं तो आपके लिए न्याय के दरवाजे लगभग बंद हैं।







