रिपोर्टर: संदीप मिश्रा, रायबरेली
सलोन पुलिस पर गंभीर आरोप: हिरासत में युवक की हालत नाजुक, पिता की सदमे में मौत
रायबरेली जिले की सलोन कोतवाली पुलिस पर फिर सवाल उठने लगे हैं। इस बार आरोप चोरी के एक मामले में गिरफ्तार युवक के साथ थाने में अमानवीय बर्ताव और थर्ड डिग्री टॉर्चर का है। मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई जब मरणासन्न हालत में बेटे को देखने के बाद उसके पिता की सदमे में मौत हो गई।
पूरा घटनाक्रम 26 मई से शुरू हुआ जब सलोन थाना क्षेत्र के पैगंबरपुर पश्चिमी गांव निवासी अनिकेत उर्फ अंकित, मन्तोष, शिवम उर्फ देवा और आनंद शर्मा को चोरी की घटना में संलिप्तता के संदेह में गिरफ्तार किया गया। यह गिरफ्तारी कस्बा चौकी इंचार्ज प्रवीण पुंज और उनकी टीम द्वारा की गई थी।
परिजनों का आरोप है कि थाने में चारों युवकों को बुरी तरह पीटा गया और चोरी स्वीकार करने का दबाव बनाया गया। इस दौरान अनिकेत के साथ सबसे अधिक मारपीट की गई, जिसमें कथित तौर पर थर्ड डिग्री टॉर्चर के भी प्रयोग किए गए। इस पिटाई में अनिकेत को गंभीर आंतरिक चोटें आईं, जिसकी वजह से उसकी हालत लगातार बिगड़ती चली गई।
28 मई को चारों आरोपियों को जेल भेजा गया। पुलिस ने दावा किया कि उनके पास से 45 हजार रुपये नकद और चोरी के औजार बरामद हुए हैं। लेकिन जेल में अनिकेत की तबीयत और अधिक खराब हो गई। पहले उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, और बाद में हालत गंभीर होने पर उसे एम्स में भर्ती कराया गया।
परिजनों का आरोप है कि पुलिस पिटाई के चलते अनिकेत की आंत फट गई है। उसे जीवन के लिए संघर्ष करते देख उसके पिता रामेश्वर मानसिक तौर पर टूट गए और जब वे एम्स पहुंचे, तो बेटे की हालत देखकर वे बेहद विचलित हो गए। उसी रात उन्हें हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई।
इस घटना के बाद पीड़ित परिवार गहरे सदमे में है। अनिकेत की मां और पत्नी रोते-बिलखते हुए इंसाफ की मांग कर रही हैं। घर में कमाने वाले दो पुरुष – एक अस्पताल में भर्ती है और दूसरा इस दुनिया में नहीं रहा।
गांव के लोगों में पुलिस के प्रति नाराजगी है। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर लोगों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कई लोग इसे सीधे तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन मान रहे हैं।
पुलिस प्रशासन की ओर से कहा गया है कि पूरे मामले की जांच की जाएगी। हालांकि अब तक किसी पुलिसकर्मी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। परिजन मांग कर रहे हैं कि जांच निष्पक्ष हो और दोषियों को सजा मिले।
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या थाने के अंदर न्याय के नाम पर अत्याचार का यह तरीका अब आम बात हो गई है? क्या कमजोर वर्ग के लोगों को अपनी बात रखने का कोई अधिकार नहीं?
इस घटना ने समाज में एक बड़ी बहस को जन्म दिया है कि क्या हमें कानून के राज में ऐसी बर्बरता स्वीकार्य होनी चाहिए? जवाब शायद सबके पास हो, पर अब जरूरी है कि जिम्मेदारों को कटघरे में खड़ा किया जाए।





