रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली, उत्तर प्रदेश, कड़क टाइम्स
रायबरेली, 27 सितम्बर 2025
रायबरेली। जिले के जगतपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत दौलतपुर गांव में प्रकृति की हरियाली को दिन-दहाड़े बेरहमी से उजाड़ा जा रहा है। यहां आम, शीशम, महुआ और गुलर जैसे वर्षों पुराने पेड़ों पर लकड़हारे का आरा बेखौफ चल रहा है। जानकारी के मुताबिक, ठेकेदार हुकुम सिंह और उसके गिरोह द्वारा बिना किसी परमिशन के भारी पैमाने पर पेड़ों की कटाई की जा रही है। इलाके में गूंजती आरी की आवाजें इस बात का सबूत हैं कि किस तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर मोटे मुनाफे का खेल खेला जा रहा है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह अवैध कटान पिछले कई दिनों से लगातार हो रहा है, लेकिन प्रशासन और वन विभाग की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। आरोप है कि ठेकेदार की दबंगई इतनी बढ़ चुकी है कि वह क्षेत्र में घूम-घूमकर मनचाहे पेड़ों को कटवा देता है। तस्वीरों और घटनास्थल के नजारे देखकर साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब तक कितने हरे-भरे पेड़ जमींदोज कर दिए गए हैं।
वन विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि विभागीय अधिकारी मोटी रकम लेकर आंख मूंदे बैठे हैं। जिन अधिकारियों का नाम खुलकर सामने आया है उनमें सुशील यादव और रवि का जिक्र हो रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इन अधिकारियों की मिलीभगत से ठेकेदार हुकुम सिंह खुलेआम कानून तोड़ते हुए पेड़ों की कटाई कर रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक इस तरह की अवैध गतिविधियां चलती रहेंगी और कब तक अधिकारियों की जेबें भरने का खेल जारी रहेगा। 
गांव वालों की मानें तो कई बार शिकायतें करने के बावजूद न तो थाना प्रशासन और न ही वन विभाग कोई ठोस कदम उठाता है। हालात ये हैं कि ठेकेदार की दबंगई से ग्रामीण भी सहमे हुए हैं। विरोध करने पर डर और धमकी का माहौल बना दिया जाता है। सवाल यह है कि जब खुलेआम अवैध कटान चल रहा है तो आखिर जिम्मेदार विभाग क्यों चुप हैं?
इस पूरे प्रकरण ने पर्यावरण को भी गहरा झटका दिया है। आम, महुआ, शीशम और गुलर जैसे पेड़ न सिर्फ हरियाली का आधार हैं बल्कि ये लाखों जीव-जंतुओं के लिए भी जीवनरेखा हैं। खासतौर पर शीशम और महुआ जैसे पेड़ ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था और पारंपरिक जरूरतों से भी जुड़े हैं। इनकी अवैध कटाई से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है। हवा की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है और भूमिगत जलस्तर पर भी सीधा असर देखने को मिल सकता है।
आज जब पूरी दुनिया क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्याओं से जूझ रही है, उस समय रायबरेली जैसे जिले में इस तरह की गतिविधियां कहीं न कहीं हमारे सिस्टम की खामियों को उजागर करती हैं। ग्रीन इंडिया का सपना तब तक अधूरा रहेगा जब तक इस तरह की अवैध कटाई को रोकने के लिए कठोर कदम नहीं उठाए जाएंगे।
लोगों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में यह क्षेत्र पेड़-पौधों से उजड़ जाएगा और पर्यावरणीय संकट बढ़ेगा। ग्रामीणों ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि ऐसे ठेकेदारों और उनके संरक्षकों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई हो। स्थानीय लोगों की मांग है कि जिन अधिकारियों की मिलीभगत सामने आ रही है, उनके खिलाफ भी Inquiry कर कठोर दंड दिया जाए ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी और ठेकेदार इस तरह की हरकत करने की हिम्मत न जुटा सके।
ठेकेदार हुकुम सिंह की दबंगई पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह खेल वर्षों से चल रहा है और अब इसकी रफ्तार और तेज हो गई है। इस पूरे मामले में कहीं न कहीं सिस्टम की खामोशी ही ठेकेदारों को हिम्मत दे रही है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर अवैध कटान बंद नहीं हुआ तो वे बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।
अब सवाल यह है कि क्या वन विभाग और थाना प्रशासन मिलकर इस अवैध कटान पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाएंगे या फिर यह मामला भी कागजों तक सिमटकर रह जाएगा? हुकुम सिंह जैसे ठेकेदारों पर कार्रवाई होगी या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल गांव दौलतपुर और आसपास के लोग इस उम्मीद में हैं कि प्रशासन इस गंभीर मामले को हल्के में नहीं लेगा और हरे-भरे पेड़ों को बचाने के लिए निर्णायक कदम उठाएगा।
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब तक भ्रष्टाचार और मिलीभगत का तंत्र नहीं टूटेगा, तब तक जंगल और पेड़-पौधे बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। अब देखने वाली बात यह है कि वन विभाग के अधिकारी सुशील यादव, रवि और ठेकेदार हुकुम सिंह पर कब और कैसी कार्रवाई होती है। क्या सरकार की “हरित क्रांति” और “स्वच्छ पर्यावरण” की बातें केवल कागज़ों में ही रह जाएंगी या धरातल पर भी इनका असर दिखेगा?
फिलहाल जिले में चर्चा का विषय यही है कि आखिर कब प्रशासन जागेगा और कब तक प्राकृतिक धरोहरों को इस तरह से लूटा जाएगा। आमजन की निगाहें अब जिला प्रशासन और शासन पर टिकी हुई हैं।





