जंगल पर चली आरी, महुआ के पेड़ों की हो रही बेरोकटोक कटाई, जिम्मेदार खामोश
रिपोर्ट: माया लक्ष्मी मिश्रा, रायबरेली | कड़क टाइम्स
रायबरेली, उत्तर प्रदेश – जगतपुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले हरदी टीकर गांव में अवैध रूप से हरे पेड़ों की कटाई का मामला सामने आया है, जिससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। पेड़ों की कटाई के इस खेल में तेज बहादुर नामक ठेकेदार का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है, जो बिना किसी सरकारी अनुमति के महुआ के दर्जनों पेड़ों पर आरी चलवा चुका है।
ग्रामीणों का आरोप है कि यह काम दिनदहाड़े हो रहा है और जिम्मेदार अधिकारी पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यह सब प्रशासन और वन विभाग की मिलीभगत से हो रहा है?
अवैध कटान की असलियत
हरदी टीकर में हुए ताज़ा घटनाक्रम में स्थानीय लोगों ने जानकारी दी कि तेज बहादुर नाम का ठेकेदार लंबे समय से क्षेत्र में घूम-घूम कर हरे-भरे पेड़ों को कटवा रहा है। खासकर महुआ के पेड़ों को निशाना बनाया जा रहा है, जो न केवल पारंपरिक रूप से उपयोगी हैं बल्कि प्राकृतिक संतुलन के लिए भी अहम हैं।
गांव में पेड़ों के ताजे कटे हुए ठूंठ, फैली हुई टहनियां और लकड़ियों के ढेर साफ तौर पर इस कृत्य की पुष्टि करते हैं।
सबूतों की भरमार, फिर भी कार्रवाई नहीं
कड़क टाइम्स को ग्रामीणों द्वारा भेजी गई तस्वीरों और वीडियो में देखा जा सकता है कि कई महुआ के ताजे पेड़ हाल ही में काटे गए हैं। ग्रामीणों का दावा है कि यह सारा कटान बिना किसी वन विभागीय अनुमति के किया गया है।
“हमें डराया जा रहा है कि अगर कोई आवाज़ उठाई तो अंजाम भुगतना होगा,” – एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर बताया।
घूस और मिलीभगत का खेल?
ग्रामीणों और सूत्रों का कहना है कि तेज बहादुर ने वन विभाग के कुछ अफसरों को मोटी रकम देकर यह काम आराम से अंजाम दिया है। इस पूरे घटनाक्रम में थाना जगतपुर और वन विभाग की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है।
लोगों का कहना है कि तेज बहादुर को किसी भी प्रकार की सरकारी कार्यवाही का डर नहीं है क्योंकि वह “सब सेट है” जैसे वाक्यों का इस्तेमाल खुलेआम करता है।
कानून क्या कहता है?
भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी हरित पेड़ की कटाई के लिए जिला वन अधिकारी से पूर्व अनुमति आवश्यक होती है।
यदि कोई व्यक्ति या संस्था बिना अनुमति पेड़ काटता है, तो उसके खिलाफ:
- भारतीय वन अधिनियम 1927
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
के अंतर्गत सख्त दंडात्मक कार्यवाही हो सकती है, जिसमें 2 साल तक की जेल और जुर्माना शामिल है।
लेकिन जब अधिकारियों को ही संरक्षण देने का आरोप लगे, तो सवाल उठता है – न्याय कौन देगा?
आखिर कब जागेगा सिस्टम? 
- वन विभाग कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा?
- पुलिस प्रशासन इतने बड़े अपराध पर मौन क्यों है?
- महुआ जैसे जैविक संपदा वाले वृक्षों के कटान पर ध्यान क्यों नहीं?
इन सभी सवालों का जवाब प्रशासन को देना होगा, वरना यह जन आक्रोश में तब्दील हो सकता है।
जनता की प्रतिक्रिया
गांव के लोगों में भारी गुस्सा है। एक बुजुर्ग किसान ने कहा,
“हमने अपने बचपन से इन पेड़ों की छांव में समय बिताया है। आज ये कट रहे हैं और कोई रोकने वाला नहीं। कल को हमारी जमीन भी बेच दी जाएगी।”
एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि अगर अब भी कार्रवाई नहीं की गई, तो वे राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) में याचिका दायर करेंगे।
पर्यावरण पर असर
- वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से गांव में गर्मी और धूल का असर बढ़ रहा है।
- महुआ जैसे पेड़ों की कटाई से स्थानीय जैव विविधता पर संकट मंडरा रहा है।
- जानवरों और पक्षियों का बसेरा उजड़ रहा है।
जनता की मांग
ग्रामीणों ने कड़क टाइम्स से अपील की है कि यह खबर शासन-प्रशासन तक पहुंचे और जांच की मांग की जाए।
उनकी मुख्य मांगें हैं:
- तेज बहादुर ठेकेदार की गिरफ्तारी
- कटे पेड़ों की गणना और सार्वजनिक रिपोर्ट
- वन विभाग के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई
- स्थानीय स्तर पर वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत
निष्कर्ष
हरदी टीकर में पेड़ों का यह अवैध कटान न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की लूट है, बल्कि यह सिस्टम की नाकामी का आईना भी है।
अगर अब भी आंखें नहीं खुलीं, तो आने वाले समय में यह पर्यावरणीय संकट का बड़ा कारण बन सकता है।







